Happy Hindi Diwas

Sigh! Yes, this post is in English, I know that. Another special day. Yay!

Hindi Diwas was made for the promotion of the Hindi Language in 1953. On this day, CBSE Schools organize Hindi speech contests, government offices across India (including Southern India) tell their staff to use Hindi as much as possible in the official communication, and people try to fake-smile and follow along for a day. Obviously, when something becomes a part of Government Policy, there is a good chance of people not following it.

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Maidaan

पास के क्रिकेट के मैदान में अब घास नहीं उगती,
हर कहीं पैर पड़ने की वजह से अब ज़मीन बंजर हो चली है |
खेल तो अब भी खेले जाते हैं, पास दूर से बहुत बच्चे रोज़ आते हैं,
दिन भर चिल्ल-पों मचता ही रहता है, मैदान यह सब चुपचाप सहता है |

बाउंड्री पर अब झाड़ भी सूख चूका है,
कोना कोना मटमैला रूख चूका है |
गेंद जब सरक कर कोने की दीवार पर आके टकराती है,
कराह उठता है वो मैदान जैसे कोई सुई चुभो दी हो |

नाराज़ तो होता है लेकिन बच्चो की ख़ुशी देख कर लौटा देता है गेंद,
उसे तो इंतज़ार रहता है कि अँधेरा हो और बच्चे घर लौट जाएँ |
शाम ढलते ही बाउंड्री के बाहर वाले पेड़ो पर पक्षी लौट आते हैं,
सुरीली से करतल ध्वनि उस मैदान को गाके सुनाते हैं |

उन्ही पेड़ों से रोड-लाइट की रौशनी जब छन के आती है मैदान पर,
कोई नहीं होता क्रिकेट खेलने वाला, असली तब आता है मज़ा उस मैदान को |
पक्षी भी सोचुके होते हैं तब तक, अलग सा सन्नाटा छा जाता है,
बाउंड्री की दीवारें तत्पर रहती है अँधेरे के लिए, मन ही मन मुस्कुराती हुई |

थोडा और अँधेरा ढलने पर, दीवारों पर फूल खिल उठते हैं,
थोड़े थोड़े अंतराल पर, जहां जहां रोशनी नहीं होती |
चहचहाते हैं फूल, अठखेलियाँ करते हैं,
मैदान खुश हो उठता है, पेड़ो से रौशनी और कम कर देता है |

जब तक फूल आपस में व्यस्त रहते हैं, निहारता रहता है सुनसान मैदान उन्हें,
दिन भर जो बंजर रहा, जैसे अँधेरा होते हैं वसंत ऋतू आ गई हो |
जो दिन भर हुल्लड़ बाजी और शोर शराबा होता रहा,
अँधेरे में वहीँ वायलिन और सैक्सोफोन बजने लगते हैं |

जब कोई गुज़रता है मैदान के बाहर से, कोशिश करता है मैदान के फूल disturb न हो,
गुजरने वाले को जिज्ञासा भी होती हो, तो होने दो, मैदान तो फूला नहीं समाता |
थोड़ा सा कभी बाहर वाला भी मुस्कुरा देता है फूलों को देख कर,
मैदान को आँख मार कर इशारा कर देता है, कि लगे रहो, अपने को क्या |

कुछ तुनकमिजाज़ियों को फूल पसंद नहीं, खांस कर वो जता देते हैं,
फूल भी समझ जाते हैं, कि अँधेरा काफी हो चला है |
उलझी हुई अपनी डालियों को सुलझा के बिछड़ जाते हैं,
मिलेंगे फिर यहीं, इसी वक़्त कह के एक बार फिर से बंजर कर जाते हैं मैदान |

Maidaan
Maidaan

2013

कवितायेँ लिखने मैं हाथ कुछ तंग है मेरा,
कभी कभी तो लहजा भी थोडा सा  भंग है मेरा |
हिंदी में पहली कोशिश है, फिर से शुरू करूँ, खुदी से कुछ बात,
माफ़ करना, खा जाऊं, अगर मैं मात।

 

स्ह्याही के कलम की तरह, हिंदी कहीं छूट सी गयी थी,
फॉर्मेलिटी की गलियों में, भटकती कहीं रूठ सी गयी थी।
गलती से घुमते फिरते, जब पड़ती है हिंदी अख़बार पे नज़र,
भाग कर उठालेने का, अन्दर बजता है एक buzzer |

 

अंग्रेजी में तो बड़ा सरल है राइम करना,
फेविकोल को अल्कोहल से जोड़ के पेट्रोल के मायने बयान करना |
शब्दों के ढेर से जब निकालने पड़ रहे हैं अल्फाज़,
लगता है, नौसीखिए से बजवाया जा रहा हो जबरदस्ती कोई कठिन साज़ |

 

खैर, यह मकसद नहीं था की मेरी waste कोशिश की चर्चा करूँ,
बस यही था की इस साल फिर से कुछ नया करूँ,
2012 कुछ हद तक मेरा रहा,
बाकी समय हम सब से बहुत कुछ लेता रहा,

 

आशा है की इस वर्ष, खुशियाँ ज्यादा, गम कम रहेंगे,
थोडा गिरे भी तो, फिर से उठ खड़े होने के लिए हम कहते रहेंगे!
जो बाकी रह गया, पूरा करवाएगा आने वाला सवेरा,
दो हज़ार तेरह, साल हो यह तेरा!