सिटी बसों में दफ्तर जाने से काफी कुछ सीखने को मिलता है । आगे पीछे, आमने सामने, भांति भांति के लोगो से पाला पड़ता है । बैंक में आपके कितना भी बैलेंस हो, दफ्तर में आपका कोई भी औदा हो । जब सीट नहीं होती, तोह आपको खड़े रहना पड़ता है । भले ही नयी वाली ‘दम मारो दम’ का टाइटल सोंग जो की दीपिका पे फिल्माया गया था कितना भी ओछा हो, लेकिन सच्चाई बता जाता है। आपके साथ वालों से जो, हेह, गंध आती है, उस से आपके सस्ते महंगे दो परफ्यूम का प्रभाव शून्य होजाता है । वोह गंध आप पर तब तक चढ़ी रहती है जब तक आप ऑफिस के एयर कंडीशनर वाले गलियारों में नहीं पहुँचते । ऑफिस में भले ही आप अपनी पोषता का बखान करते फिरते हो, लेकिन सड़क पे आपकी औकात उतनी ही है जितनी की एक बिजली की खम्बे की। आपको बस इतना प्रयत्न करना है की आपको कोई जानवर गीला न करदे ।
ऐसे ही कल की ही बात है, में अपने सवा 9 घंटे की आवश्यक, हेह, शिफ्ट ख़त्म करके ऑफिस से निकला और निकलते ही सामने से आती बस में चढ़ गया । शाम के वक़्त बस थोड़ी ओवरलोडेड होती है, सबको घर जाने की जल्दी जो रहती है। मेरेको सीट नहीं मिली तोह मैं दरवाज़े के पास ही खड़ा होगया क्यूंकि मेरेको किसी काम से अगले ही स्टॉप पे उतना था । जब से थोडा कमान शुरू किया है, और चूंकि, घर थोड़ी से ज्यादा दूरी पे है, मैं ज्यादातर वॉल्वो बस में ही चढ़ता हूँ । लेकिन जैसा की मुझे आगे थोडा काम था, मैं सामान्य में ही चढ़ गया। जब एक बार आप सीट पे बैठ जाते हो, तोह ज़्यादातर आपका ध्यान खिड़की से बाहर होता है। लेकिन अगर आपको अपना सफ़र खड़े रह कर काटना है तोह आप हर आगे पीछे खड़े बैठे वालो पे ध्यान दे सकते हो। टाइमपास के लिए और क्या पता की कोई ऐसा चेहरा दिख जाए जो आँखों को थोडा अच्छा लगे। गौरतलब है की किसी को देखना और निहारना अलग बात है, और किसी को गौरना अलग। इसी बात की तोह आजकल बड़ी डिबेट चल रही है। आप एक क्षण किसी को देख ज़रूर सकते हैं और जब जेम्स ब्लंट का ‘योर ब्यूटीफुल’ सुनते वक़्त उस पल को याद कर सकते हैं। और आप किसी को लगातार इतना घूर सकते हैं की सामने वालो को ग्लानि सी महसूस होने है की ऐसा क्या है उसके चेहरे पे (या थोडा नीचे) कि सामने वाला अपनी नज़र ही नहीं हटा रहा। ऐसा नहीं है की देखने वाला हमेशा ही गलत विचार से देख रहा हो, लेकिन ज्यादातर तोह सबके भीतर विचार गलत ही आते हैं। तोह हुआ यह, कि मैं खड़ा हो कर, बैठे हुए लोगों को हल्का फुल्का परख रहा था। सामने देखता हूँ, की एक बन्दा अपने मोबाइल फ़ोन से झुक कर कुछ कर रहा है। जल्द ही समझ आया कि वोह कैमरे से कुछ करना चाह रहा है। शायद खुदकी बस में बैठे हुए एक तस्वीर। सेल्फ-शॉट प्रोफाइल पिक्चर। उसका मोबाइल तोह ठीक सा लग रहा था, लेकिन शकल ऐसी नहीं लगी की ट्विटर वाला बाँदा हो। हाँ फेसबुक टाइप ज़रूर लगा . और इतना स्पेसिफिक stereotyping कर ही रहे हैं तोह उसको ओरकुटिया कहना बेहतर होगा। फिर मेरी नज़र उस से 3 फीट दूर बैठी एक लड़की पर गयी। वोह लड़का शायद उस लड़की की ही पिक्चर लेने की कोशिश कर रहा था। साफ़ बात थी की वोह लड़की उसके साथ नहीं थी। चूंकि में बैंगलोर में हूँ जहाँ सभी लोग हिंदी भाषी नहीं हैं, हाँ, लेकिन थोड़ी इंग्लिश सब जानते हैं। थोडा जिझक के में हिंदी में ही चिल्लाया,
“अबे ओये, क्या कर रहा है बे! लड़की की फोटो उस से बिना पूछे कैसे लेता है? इतना दिखाया है TV पे की अपना हम आदमियों को ही अपना attitude बदलना होगा वरना इस देश में औरतों के साथ बुरा ही होगा! समझ नहीं आया तुझे? चल माफ़ी मांग उस लड़की से और सारी फोटो डिलीट मार!”
फिर ध्यान आया की मेरी आवाज़ नहीं निकली है। मैं यह अपने दिमाग के अन्दर ही चिल्लाया। फिर दिमाग हिस्से के एक हिस्से से आवाज़ आई, की हो सकता है उस लड़की को कोई दिक्कत न हो। और शाम से वक़्त वैसे भी बस में अँधेरा ही होता है तोह वैसे भी ढंग की पिक्चर नहीं आएगी। और मुझे क्या कोई किसी की पिक्चर पूछ के ले या बिना पूछे। हाँ अगर वोह लड़की से बद्तामीजी करके तोह मेरा फ़र्ज़ है की मैं उसको रोकूँ। और उम्मीद रहती है की ऐसी नौबत ना ही आये। यह तोह TV वालों ने थोड़े दिन उम्मीद जगाई थी की सब सुपर हीरो बन सकते हैं। कहना आसान है, करना मुश्किल। 2 ही मिनट में वोह लड़की बस से उतर गयी। उसको पता भी नहीं चला होगा की शायद एक ओरकुटिया बन्दा उसकी वजह से शायद सेल्फ-juicing करेगा। सेफ का सेफ और किसी को कोई चोट नहीं पहुंची। कुछेक के सम्मान को शायद पहुंची होगी लेकिन सड़क पे क्या सम्मान। वैसे भी नार्थ में बस में लिखा होता था की ‘अपने सम्मान की रक्षा स्वयं करें ‘। इधर भी लिखा होता है लेकिन कन्नड़ में, तोह समझ के बाहर है। फिर अगला स्टॉप मेरा था, मैं भी उतर गया और यह बात भूल गया। रात को शान्ति में थोडा फ्लैशबैक हुआ तोह लिख दिया।
अपनी बात ज़ोर से बोलने की कोई तो तरकीब होती होगी, जो की मेरेको सीखनी बाकी है । जो बात में 2 लाइन लिख के भी कह सकता था, उसके लिए इतना सब लिखा ताकि मेरी गलती कहीं छुप सके। येही तोह सीखा है अब तक।