2013

कवितायेँ लिखने मैं हाथ कुछ तंग है मेरा,
कभी कभी तो लहजा भी थोडा सा  भंग है मेरा |
हिंदी में पहली कोशिश है, फिर से शुरू करूँ, खुदी से कुछ बात,
माफ़ करना, खा जाऊं, अगर मैं मात।

 

स्ह्याही के कलम की तरह, हिंदी कहीं छूट सी गयी थी,
फॉर्मेलिटी की गलियों में, भटकती कहीं रूठ सी गयी थी।
गलती से घुमते फिरते, जब पड़ती है हिंदी अख़बार पे नज़र,
भाग कर उठालेने का, अन्दर बजता है एक buzzer |

 

अंग्रेजी में तो बड़ा सरल है राइम करना,
फेविकोल को अल्कोहल से जोड़ के पेट्रोल के मायने बयान करना |
शब्दों के ढेर से जब निकालने पड़ रहे हैं अल्फाज़,
लगता है, नौसीखिए से बजवाया जा रहा हो जबरदस्ती कोई कठिन साज़ |

 

खैर, यह मकसद नहीं था की मेरी waste कोशिश की चर्चा करूँ,
बस यही था की इस साल फिर से कुछ नया करूँ,
2012 कुछ हद तक मेरा रहा,
बाकी समय हम सब से बहुत कुछ लेता रहा,

 

आशा है की इस वर्ष, खुशियाँ ज्यादा, गम कम रहेंगे,
थोडा गिरे भी तो, फिर से उठ खड़े होने के लिए हम कहते रहेंगे!
जो बाकी रह गया, पूरा करवाएगा आने वाला सवेरा,
दो हज़ार तेरह, साल हो यह तेरा!